Posts

प्रथम गुरु।

गुरु पूर्णिमा।      धरती पर गुरु अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले होते है। गुरु ही होते है जो हमे पशुत्व से मनुष्यता की ओर अग्रसारित करते है। यदि गुरु न होते तो हम भी पशुत्व में ही जी रहे होते। आज भी जिस किसी को जीवन मे गुरु न मिलते है, उनमे मनुष्यता का अभाव ही होता है।              धरती पर इंसान के प्रथम गुरु माता पिता होते है।।   ।। गुरुणामेव सर्वेंषा माता गुरुतरा स्मृता।।  अर्थात, सब गुरु में माता सर्वश्रेष्ठ होती है। माता ही होती है जो हमे सर्वप्रथम बोलना सिखलाती है। माता ही होती है जो हमे सर्वप्रथम सांसारिक विषय बोध कराती है। माता हमारे लिए उस छतरी के समान होती है जो हम पर गिरने वाली किसी भी समस्या को अपने ऊपर ले कर हमें सुरक्षित रखती है।                             पिता भी हमारे प्रथम सांसारिक गुरु होते है। वयक्ति के लिए पिता सूर्य की तरह होते है, जिसके उजाले में हम दुनिया को स्पष्टता से देख पाते है। पिता का तप हमे आत्मबल और मनोबल प्रदान करता है। जब हम नन्हे-  नन्हे पैरो पर प्रथम बार चलते है तो पिता ही हमे प्रथम सहारा देते है।  वो पिता ही होते है जिनके कंधो पर बैठ कर हम दुनिया

अपना अपना धर्म।

महाभारत के युद्ध का आज 17 वाँ दिन था। कर्ण अपने पूरे सामर्थ्य से युद्ध लड़ रहा था। अर्जुन कर्ण को पूर्णतः रोकने में असफल रहे थे। परंतु आज होनी कुछ और थी। दोपहर बाद का समय था, कर्ण और अर्जुन आमने-सामने थे। दोनों वीर एक दूसरे पर नाना प्रकार के बाण चला रहे थे। इधर भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन का उत्साह बढ़ा रहे थे तो उधर शल्य कर्ण को हतोत्साहित करने वाली बात कर रहे थे, पर दोनों योद्धा पूरे मनोयोग से लड़ रहे थे। अचानक एक नाग ने आ कर कर्ण से बोला " हे महारथी तू मुझे बाण पर रख कर उपयोग कर मैं तुरंत अर्जुन का काम तमाम कर दूंगा"। कर्ण ने उस नाग को डाँटते हुए बोला ' तू मनुष्यता का दुश्मन है, मैं अपनी भुवन के जीत के लिए ऐसा पतित कार्य न करूँगा' । और उसने नाग को भगा दिया।                                            अचानक कर्ण के रथ का चक्का रणभूमि के कीचड़ में फंस गया।  घोड़ो न बहुत जोड़ लगाया परंतु चक्का बाहर न निकल सका। अब कर्ण खुद नीचे आ कर अपने भुजाओ का जोड़ लगाया। उसके जोड़ लगाने से धरती डोल गई, परंतु रथ का चक्का न हिल सका, बडी अदभुत बात थी।       कर्ण को इस विपदा में पड़ा देख अर्जुन ने बा

रेडियोसक्रियता।

प्रकृति में पाए जाने वाले वो तत्व जो स्वतः विखंडित हो कर कुछ अदृष्य किरणे उत्सर्जित करते है, रेडियोसक्रिय तत्व कहलाते है, तथा यह घटना रेडिओसक्रियता कहलाती है।   सर्व प्रथम फ्रांसीसी  विद्वान हेनरी वेकरल ने रेडियोसक्रियता की खोज की थी। इसलिए प्रारंभ में इसे वेकरल किरणे कहा जाता था। 1903 में मैडम क्यूरी तथा उनके पति पियरे क्यूरी ने पिंचब्लेड से रेडियम नामक अत्यंत रेडियोसक्रिय तत्व की खोज की। आज 40 से ज्यादा प्राकृतिक रेडिओसमस्थानिक और अनेक रेडियोसक्रिय तत्व ज्ञात है।  रेडियोसक्रियता 2 प्रकार की होती है। पहला प्राकृतिक तथा दूसरा कृत्रिम।  प्राकृतिक रेडियोसक्रियता में स्वावतः विखंडन होता है जैसे यूरेनियम, रेडियम, थोरियम इत्यादि। कृतिम रेडियोसक्रियता वह प्रक्रिया है जिसमे कोई तत्व कृत्रिम तरीके से किसी ज्ञात तत्व से  रेडियोसक्रिय समस्थानिक में प्रवर्तित होता है।  इस प्रक्रिया में उस पर तीव्र वेग वाले कणों यथा प्रोटोन, डियूटरोंन अल्फा कण का प्रहार किया जाता है।   रेडियोसक्रिय पदार्थो से निकलने वाले अदृश्य किरणों को रेडियोसक्रिय किरणे कहा जाता है। इसकी खोज रदरफोर्ड ने की थी। रदरफोर्ड ने इन्हे

सब अच्छा होता है।

बचपन मे एक कहानी सुनी थी।   एक राजा था, उसका एक मंत्री भी था। मंत्री गुणवान एवम धार्मिक आदमी था। मंत्री को भगवान पर पूरा भरोसा था। जिंदगी में घटने वाली सभी घटनाओं को वो भगवान की प्रसाद समझता था।          एक बार की बात है, राजा की उंगली थोड़ी सी कट गई तलवार से। मंत्री ने बोला श्री मन इसमें भी भगवान की कोई न कोई लीला होगी। यह सुनते ही राजा क्रोधित हो गया और मंत्री को कारावास में डाल दिया।   कुछ दिन बाद राजा शिकार पर जंगल गया। जंगल बहुत घना और रास्ते भी कठिन थे, राजा और उसका एक सेवक रास्ता भूल गए और अपने दल बल से अलग हो गए। राजा बहुत परेशान हो गया। उसे कुछ भी नही सूझ रहा था कि तभी जंगली लोगो का एक दल वहा आ गया। उनलोगों ने राजा और उसके सेवक को पकड़ लिया और अपने देवता पर बलि चढ़ाने के लिए ले गए।  जब उनका जांच किया तो पता चला कि राजा की उंगली कटि है, अब अंग भंग आदमी की बलि नही दी जा सकती थी। फलतः राजा को छोड़ दिया गया और सेवक की बलि दे दी गई। राजा किसी प्रकार अपने घर पहुँचा और  मंत्री को जेल से बाहर निकालने का आदेश दिया।               संक्षेप में कहा जा सकता है कि कर्म को छोड़ बहुत सी चीजें हमारे